यह खतरा पहले से ही था। यह भी लगभग तय था कि भारत जैसे विशाल देश में नागरिकता संशोधन विधेयक अलग-अलग हिस्से में अलग-अलग विमर्श को जन्म दे सकता है। खासकर, पूर्वोत्तर भारत की सामाजिक जटिलताएं जिस तरह की हैं, वहां इससे कई परेशानियां खड़ी हो सकती हैं, यह बात पहले से ही कही जा रही थी। देश की नागरिकता और उसकी सीमाओं को फिर से परिभाषित करने वाले इस विधेयक के बारे में यह भी कहा जा रहा था कि वह एक तरह से असम के सिटीजन रजिस्टर का ही राष्ट्रीय विस्तार हैएक विचार यह भी था कि असम का सिटीजन रजिस्टर प्रकाशित होने के बाद से जो समस्याएं सामने आई हैं, यह विधेयक उनका भी कछ हद तक समाधान देगा। इन सारी जटिलताओं के बारे में केंद्र और इन राज्यों की सरकारों ने भी सोचा ही होगा। इस विधेयक को लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों में कोई बहुत बड़ा राजनीतिक विमर्श शुरू हुआ हो, ऐसी खबरें हमें नहीं मिली हैं। लेकिन वहां आंदोलन खड़ा होने, बंद के आयोजन और हिंसा की खबरें जरूर आने लगी हैं। यह बताता है कि अशंकाओं के बावजूद इस तरह की चीजों को रोकने के लिए जो प्रशासनिक तैयारियां होनी चाहिए थीं, वे नहीं हुईं, जबकि विरोध करने वाले अपनी पूरी तैयारी में थे और इसके पहले कि विधेयक राज्यसभा के पटल पर रखा गया, सड़कों पर विरोध और प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया। पूर्वोत्तर भारत में मामला जटिल इसलिए भी है कि एक तो वहां के समाजों में अपनी अलग जातीय पहचान को लेकर संवेदनशीलता कुछ ज्यादा ही है। दूसरे, यह देश का वह इलाका है, जहां पड़ोसी बांग्लादेश से घुसपैठ कुछ ज्यादा ही हुई है। इनर लाइन परमिट के तहत आने वाले इलाके इसके असर से भले ही कुछ हद तक बचे हों, लेकिन बाकी जगहों पर जनसंख्या का स्वरूप पिछले कुछ दशकों में काफी तेजी से बदला है। ऐसा भी कहा जाता है कि कुछ जगहों पर जनजातियों के लोग भाषाई अल्पसंख्यकों में बदल रहे हैंइन स्थितियों में रहने वाले नागरिकता को लेकर कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हैं, इसलिए नागरिकता संशोधन विधेयक वहां जनमानस को काफी खदबदा रहा हैवैसे यह उग्र आंदोलन इस विधेयक के लोकसभा में पास होने के बाद शुरू हुआ है, इसलिए यह पूरे देश की तात्कालिक परेशानी का कारण बन गया है, लेकिन यह भी सच है कि पूर्वोत्तर भारत में ऐसे आंदोलनों का एक इतिहास रहा है। खासकर, विदेशी नागरिकों को निकाले जाने को लेकर लंबा आंदोलन चलाने वाले असम को इस विधेयक ने कुछ ज्यादा ही परेशान किया हैएक कारण वह असम समझौता भी है, जिसके आधार पर नागरिक रजिस्टर तैयार किया गया है। वहां लोगों को लगता है कि इस समझौते ने उन्हें जो दिया था, नया विधेयक उसे कुछ हद तक छीन रहा है। पूर्वोत्तर पर इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद क्या असर होगा, यह हमें अभी ठीक से नहीं पता, पर यह स्पष्ट है कि आशंकाएं समस्या को ज्यादा बढ़ा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया है कि वहां के लोगों के अधिकार इस विधेयक के चलते किसी भी तरह से नहीं छिनेंगे, लेकिन अगर इस तरह का आश्वासन पहले दिया जाता और स्थानीय स्तर पर विभिन्न जातीय समूहों को विश्वास में लेकर आगे बढ़ा जाता, तो शायद इस टकराव से बचा जा सकता था
आशंकाएं और टकराव